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Thursday, November 8, 2007

इस आलम इस तन्हाई में खुद पर यूँ हैरानगी होती हे
की क्या थे और क्या हो गए, यकीं भी न आता हे
और हमारी इस हैरानगी का कुछ तमाशा सा बन जाता हे

समय के साथ सपने बदल गए
शायद खुद की सोच थी या फिर जिंदगी में ऊलझ गए
सपनो का तो इतना दुःख नहीं पर हम कुढ़ कितना बदल गए !

किस का सहारा ले दिल जब करहता हे
किस का साथ मांगे जब न पास न दूर , कही कोई नज़र न आता हे

तुम्हे पाने की चाहत तो न रही पर
दिल की एक बात पर यकीं आता हे
समझा ले चाहे लाख खुद को पर
अभ भी प्यार तुम पर ही आता हे

हंसेंगी दुनिया मेरे खयालो पर , येः भी समझ आता हे पर क्या करे इस पागल दिल को कुछ और न सुझाता हे
तुम चाहे दूर रहो या पास चाहे हम तुम्हे आपना कहे यअ आपने जीवन की अआस ज़िन्दगी तो बस वही थम गयी ज़हा तुम्हारा जाता हुआ चेहरा नज़र आता हे

3 comments:

akanksha said...

I see you started in hindi too !
nice but .. thodi matra ka fer badal hai

MiNdless RamBling said...

hey! never thght anyone is keeping a track of it...bt i surely take that as a compliment :)...matra was never the strng point and whn usin language converters it gets even worse :)...bt i wud really luv it if you cud post some comments on the writings too!

Manish said...

mann!! u really have it in you...the intense pain!;-)